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लेखनी प्रतियोगिता -23-Sep-2023 'दर उसका छोड़ कर'

'दर उसका छोड़ कर'

दर उसका छोड़ कर तो चले आये है।
मग़र सारे जज़्बात वहीं छोड़ आये है।। 

कफ़स में कैद कर ली जो होठों से आह निकली। 
हम आँखों के सारे नज़ारें उसकी चिलमन को दे आये है।। 

कदम उठा कर जब आगे बढ़ाया तो लगा ऐसा जैसे। 
परिंदे शज़र से अपना नाता हमेशा के लिए तोड़ आये है।। 


ख़ुशियों के सारे मंज़र तेरे दरों दीवार पर सज़ा आये। 
तंहाइयाँ सब उठा कर हम अपने दामन में भर लाये है।। 

दर के बाहर जो रखा कदम दो घड़ी ठिठक कर आये। 
साखी की आवाज़ ना सुनकर रुस्वाई से भर आये है।।

तेरी हसरतों को बुलंदियाँ देने की ख़ातिर। 
बे फ़ैज़ दिल की बस्ती हम उजाड़ आये है।।
 

मधु गुप्ता "अपराजिता"





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4 Comments

Varsha_Upadhyay

24-Sep-2023 04:58 PM

Nice 👌

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सुन्दर सृजन

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Reena yadav

24-Sep-2023 07:47 AM

👍👍

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